बिजनेस रेमेडीज़/पाली। पाली शहर सहित आसपास के 60 किमी दायरे में टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज से निकले पानी से पर्यावरण को बचाने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सख्ती के नतीजे दिखने लगे हैं। सीईटीपी फाउंडेशन ने रसायनयुक्त पानी साफ कर री-यूज करने के लिए जीरो लिक्विड डिस्चार्ज प्रोजेक्ट तैयार कर लिया है। देश का यह पहला कॉमन इन्फ्यूलेंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) है, जो डीएएफ तकनीक से बना है। जेडएलडी में विदेशी मशीनें लगाई हैं। प्लांट में 3 चरणों में होकर शुद्ध पानी निकलेगा। इसमें से 93त्न पानी री-यूज होगा। शेष केमिकल्स वेस्ट को एमईई में डालकर उड़ाकर नमक बनाया जाएगा, जो भी केमकिल के रूप में काम आएगा। टेस्टिंग पूरी हो गई है, 25 जून से पहले चरण में 3 एमएलडी पानी ट्रीट होगा। 20 जुलाई तक सभी फैक्ट्रियों का पूरा 12 एमएलडी पानी ट्रीट कर फैक्ट्रियों में वापस सप्लाई होगा। यानी गंदा पानी नदियों में नहीं जाएगा। इस पर 100 करोड़ रुपए लागत आई है।
प्रमुख विदेशी तकनीक की मशीनें करेंगी पानी को साफ
1. यूएफ : अल्ट्रा फिल्टरेशन एंड रिवर्स आजमोसेस (यूएफ) मशीन जापान से आई है। इसमें महीन कपड़ा लगा है, जो पानी में छोटे से छोटे कण को अलग करता है।
2. मेमरन : यह मशीन यूएस से मंगवाई है। इसमें अलग-अलग तरह से फिल्टर लगे होते हैं, जो आरओ की तरह पानी को साफ करते हैं।
3. एनर्जी सेविंग टर्बो पंप : यह मशीन कनाडा से आई है। इससे ट्रीटमेंट प्लांट के संचालन में पैदा होने वाली एनर्जी को सेव करने के बाद इसका उपयोग नमक समेत अन्य वेस्टेज को सुखाने में होगा। इससे नाम मात्र की ही स्लज बचेगी।
4. मल्टी इफेक्टिव एवोब्रेटर : यह मशीन विदेशी तकनीक से ही बनी हुई है। इसमें नमक व पानी को उच्च मापदंड पर भाप बनाकर उड़ाया जाएगा।
देश का पहला सीईटीपी इसलिए
डिजोल एयर फ्लोरेशन यानी डीएएफ तकनीक का बालोतरा के जसोल में भी उपयोग हो रहा है मगर वहां सीईटीपी अभी निर्माणाधीन है। सीईटीपी अध्यक्ष अनिल गुलेच्छा ने बताया, अब ट्रीटमेंट प्लांट-4 को जेडएलडी तकनीक से जोड़ रहे हैं। फिर दोनों प्लांटों की कुल क्षमता 24 एमएलडी हो जाएगी।