राजस्थान की राजनीति में कुछ नेता ऐसे भी हुए हैं, जो मौसम विभाग से भी ज्यादा सावचेत रहे और राजनीतिक नजाकत देखकर ही दल बदल कर अपनी राजनीति को चमकाते रहते थे। अलवर जिले की खैरथल विधानसभा सीट से कई बार विधायक बने सम्पत्तराम को राजनीति का धुरंधर माना जाता था, वे अलवर जिले में एक मात्र ऐसे नेता रहे जिसने सबसे ज्यादा दल बदले, कांग्रेस और भाजपा की सरकार में मंत्री भी बने। वर्ष,1990 में भैरोसिंह शेखावत की सरकार में गृह मंत्री बने तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने दलित कार्ड खेलते हुए खैरथल रिजर्व सीट से चुनाव जीतकर आने वाले सम्पत्तराम को गृह मंत्री बनाया। वर्ष,1952 में पहली बार राजगढ़ विधानसभा सीट से विधायक बनने वाले सम्पत्तराम कांग्रेस राज में भी उपमंत्री रहे। पहले कुछ विधानसभा क्षेत्र से दो विधायक चुने जाते थे, इसी में राजगढ़ विधानसभा सीट से सम्पत्तराम भी चुने गए। आपातकाल में कांग्रेस और इंदिरा गांधी के समर्थक रहे सम्पत्तराम लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. हरिश शर्मा के मुख्य चुनाव प्रभारी रहे। वर्ष,1972 में वे कांग्रेस के विधायक भी रहे है। पूरे जिले में कांग्रेस के पक्ष में वोट मांगे, जब कांग्रेस प्रत्याशी शर्मा जनता पार्टी के रामजीलाल यादव से वे चुनाव हार गए तो सम्पत्तराम ने मौके की नजाकत समझ जनता पार्टी से विधानसभा चुनाव लड़ा और विजयी हो गए। जनता पार्टी की टूट के बाद सम्पत्तराम कांग्रेस (अर्स )में शामिल होकर विधायक बने। सम्पत्तराम दल कपड़ों की तरह बदलने में माहिर रहे हैं और जनता भी इस बात को जानती थी की उनके नेता का चुनाव चिन्ह, झंडा और दल हर चुनाव में अलग ही होता था। वर्ष,1990 में वे जनता दल के चुनाव चिन्ह चक्र से विजयी होकर भाजपा-जनता दल की सरकार के गृह मंत्री बने। वर्ष,1985 में भाजपा के कमल का फूल लेकर मैदान में उतरे और सम्पत्तराम को चुनावी हार का सामना करना पड़ा। सम्पत्तराम किसी भी दल में रहे पर उनकी सभी दलों के नेताओं से अच्छी सांठ-गांठ थी। वर्ष,1985 के लोकसभा चुनाव में अलवर लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले सम्पत्तराम ऊंट चुनाव चिन्ह पर द्वितीय नंबर पर रहे। भाजपा के टिकट पर समर्थलाल खड़े थे, परन्तु उनकी स्थिति अच्छी नहीं थी, ऐसे में भाजपा नेता भैरोसिंह शेखावत ने चुनावी सभाओं में जुबान फिसलने का बहाना कर मंच से सम्पत्तराम को वोट देने की अपील कर सम्पत्तराम को लाभ पहुंचा दिया। सम्पत्तराम को चुनाव में हार भी उनके ही चेले चंद्रशेखर, मदन मोहन के कारण ही मिली, यानी गुरु गुड़, चेला शक्कर हो गया। एक समय था, जब दलित राजनीति में देश में जगजीवन राम और राजस्थान में सम्पत्तराम का ही नाम था। सम्पत्तराम के पुत्र डॉ. जगदीश को भी भाजपा खैरथल से टिकट दे चुकी है। सम्पत्तराम के एक पुत्र अशोक सम्पत्तराम वरिष्ठ आई. पी. एस अधिकारी रहे हैं। मौके की नजाकत और जनता का रुख समझने में सम्पत्तराम का कोई मुकाबला नहीं रहा।
उमेन्द्र दाधीच
@बिजनेस रेमेडीज