राजस्थान की राजनीति में कहा जाता है कि जिसने मेवाड़ जीता, उसने राजस्थान पर राज किया है। मेवाड़ की राजनीति में मोहन लाल सुखाडिय़ा के राजनैतिक विरोधी के रूप में भानु कुमार शास्त्री को माना जाता था। शास्त्री ने सुखाडिय़ा को विधानसभा चुनाव में कांटे की टककर दी और सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा भी लड़ा। पार्षद से जनसंघ (आज की भाजपा) के अध्यक्ष व सांसद – विधायक रहे भानु कुमार शास्त्री सयुंक्त परिवार में रहते थे। प्रतिदिन सौ से ज्यादा सदस्यों का भोजन उनके परिवार की बहुएं बनाती थीं। जनसंघ के वरिष्ठ नेता भानुकुमार शास्त्री का जन्म 29 अक्टूबर 1925 को पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध ज्योतिषी पंडित गिरिधर लाल शर्मा के घर हुआ था। भारत-पाक विभाजन की त्रासदी के बाद उनका परिवार उदयपुर आ गया और मेवाड़ को कर्म भूमि बनाकर यहीं रच बस गया। शास्त्री को सादा जीवन उच्च विचार वाला जननेता माना जाता था। शास्त्री ने जिस समय मेवाड़ में जनसंघ का झंडा उठाया, तब देश व प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का प्रभुत्व था। तब कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ नेता ने शास्त्री को कहा, आप कांग्रेस में शामिल हो जाओ, तुम्हारी पार्टी सात जन्म में भी सरकार में नहीं आ सकती। इस पर शास्त्री ने कहा कि मैं भारतीय संस्कृति का पुजारी हूँ। मैं पुनर्जन्म में विश्वास रखता हूँ । इस जन्म में नहीं तो किसी जन्म में अपने संकल्प को अवश्य पूरा करूंगा। भानुकुमार शास्त्री ने लम्बा राजनैतिक जीवन भोगा। साधारण स्वयसेवक से लेकर पार्षद, सांसद, विधायक, काबिना मंत्री के दर्जे के साथ राजस्थान खादी बोर्ड के अध्यक्ष रहे शास्त्री पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, भैरो सिंह शेखावत, जगन्नाथ राव जोशी, सुंदर सिंह भण्डारी, बाला साहब देवरस, गुरु जी गोलवलकर के निकटस्थ रहे। शास्त्री 1977 में उदयपुर से जनता पार्टी के टिकट पर सांसद बने। 1967 के विधानसभा चुनाव में शास्त्री ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाडिय़ा को विधायक के चुनाव में जबरदस्त टक्कर दी। सरकार का दुरूपयोग कर चुनाव जीतने का आरोप लगाते हुए भानु कुमार शास्त्री ने सुखाडिय़ा के चुनाव को चुनौती दी। मुकदमा सुप्रीम कोर्ट तक चला। 25 जून 1975 से शुरू हुए आपात काल के संघर्ष के दौरान जनसंघ का राज्य में नेतृत्व शास्त्री कर रहे थे। 1972 में शास्त्री जनसंघ से विधायक बने। उनका सुंदर सिंह भण्डारी से अच्छा सम्पर्क होने के कारण जनता पार्टी में गैर-संघियों से मतभेद बना रहा। उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन काल में कभी भी चुनाव लडऩे की इच्छा प्रकट नहीं की, परन्तु जनसंघ के पास भी उनके अलावा कोई विकल्प नहीं था। जब उन्होंने मोहनलाल सुखाडिय़ा के समक्ष चुनाव लड़ा तो चुनावी खर्चे की व्यवस्था भी मेवाड़ के कार्यकर्ताओ ने ही की। 1942 में संघ से जुडऩे के बाद 1951 में जनसंघ से जुड़े शास्त्री जब एक आंदोलन को लेकर जेल में थे, तब बहन की शादी में शामिल होने के वास्ते तीन दिन के लिए पैरोल पर बाहर आए और फिर वापस जेल चले गये। उदयपुर नगर परिषद के पार्षद, उप सभापति रहकर भानु कुमार शास्त्री ने उदयपुर के विकास के लिए अनेक योजनाएं बनाई। वर्तमान विधानसभा में नेता प्रतिप्रक्ष गुलाब चंद कटारिया को भी राजनीति में लाने का श्रेय भी शास्त्री को ही जाता है। उन्होंने जनसंघ के अध्यक्ष के रूप में आज की भाजपा के कई नेताओं को राजनीति की दीक्षा दी है।
उमेन्द्र दाधीच
@ बिजनेस रेमेडीज