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एलोपैथी व आयुर्वेद में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से आमजन का फायदा

by Business Remedies
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आयुर्वेद व योग का परचम फहराने में बाबा का कोई सानी नही है पर अभी आयुर्वेद व योग एलोपैथी का शत-प्रतिशत विकल्प नही बन पाये है। एलोपैथी को तमाशा, बेकार व दिवालिया साबित करना बाकी है। बाबा के बयानों ने एलोपैथी डॉक्टर्स को गहरी पीडा दी है महामारी के काल में। एलोपैथी अपनी जगह है व उसका विकल्प बनने में आयुर्वेद व योग को कितना समय लगेगा भविष्य के गर्भ में है। हाँ एलोपैथी इलाज करने वाले डॉक्टर्स की छवि काफी हद तक बिगड़ी है, जिसका मूल है महंगी या बिना जरूरत की दवाइयां देने व भारी भरकम कमीशन लेने की प्रैक्टिस। इनकी स्वंय की गलतियों के कारण एलोपैथी डॉक्टर का धरती के भगवान का दर्जा कमजोर हुआ है व आम आदमी योग व आयुर्वेद की तरफ झुका है। टीवी चैनलों में विज्ञापन के माध्यम से उन आयुर्वेद उत्पादों को जो बाबा के प्रादुर्भाव से पहले से अस्तित्व में है को पछाड़ कर उन पर बाबा आयुर्वेद के प्रायोजित उत्पादों ने भारी बढ़त ले ली है। बाबा से खतरा एलोपैथी को न होकर प्रतिस्पर्धी आयुर्वेद उत्पादों को हुआ है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धनजी का ओलबा उचित है। बाबा जितना कम बोलेंगे प्रतिद्वंदी चिकित्सा प्रणालियों यथा योग व आयुर्वेद के विकास के लिए अच्छा होगा। बाबा ने शायद कमिशनखोरी को केंद्रित कर कुछ कहना चाहा होगा पर बोल कुछ और गये है, जिससे एलोपैथी की बिना कमीशन खाये प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर्स को पीड़ा हुई है। उनकी एसोसिएशन को कमीशन खोर एलोपैथी प्रक्टिसनर्स को ये समाज विरोधी लत छुड़वाने पर ध्यान देना होगा। अब तो एलोपैथी व आयुर्वेद जब दोनों ही बाजार में अपने-अपने अधिकतम भाव से बिक रहे है तो फर्क क्या रह जायेगा? दोनों ही व्यापार हो गए है।
जो लोग कंजूसी के चलते योग व आयुर्वेद को अपना रहे है तो एक बात का का ध्यान रखे एलोपैथी दवाइयों को बिना डॉक्टर की सलाह किये मनमर्जी से कम न करे या छोड़े नही, जान की जोखम है ये सोच। अगर आयुर्वेद व एलोपैथी के मध्य श्रेष्ठता की प्रतिस्पर्धा के चलते आम लोगों को गुणवत्ता वाला इलाज सस्ता या मुफ्त मिलने लगे तो इसमे जनता को सक्रियता से कमैंट्स देने चाहिए।
अब जो सबसे महत्वपूर्ण बात आप सबके ध्यान में लाना चाह रहा हूँ वो यह की सभी दवाइयों व अन्य उपभोक्ता सामानों पर मूल्य लिखा हुआ आता है जो शायद अधिकतम वसूली की सीमा निर्धारित करता है, लेकिन इसके साथ ही अगर प्रत्येक दवाई व वस्तु पर उसके निर्माता द्वारा वास्तविक बेचान मूल्य व उस पर सरकार को प्राथमिक रूप से चुकाये गए टैक्स अमाउंट का भी विवरण हो तो आम जनता ये देख सकेगी की खरीद व बेचान मूल्य में वास्तविक कितना अंतर है व उपभोक्ता मुनाफाखोरी के विरूद्ध जागरूक हो सके। ब्लैक मार्केटिंग से आप सभी रूबरू हो चुके है अब आप मुनाफाखोरी से भी परिचित हो जाएंगे अगर खरीद व बेचान दोनों ही मूल्यों व चुकाये गए टैक्स की भी आपको जानकारी मिलती रहे।

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